Wednesday, October 20, 2010

यमराज का इस्तीफ़ा



यमराज का इस्तीफ़ा
एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफ़ा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इंद्रदेव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
'डायल किया गया
नंबर कृपया जांच लें'
कि आवाज़ तब सुनाई। नये-नये ऑफ़र देखकर नंबर बदलने की
यमराज की इस आदत पर इंद्रदेव को खुंदक आई,
पर मामले की नाजुकता को देखकर,
मन की बात उन्होंने मन में ही दबाई।
किसी तरह यमराज का नया नंबर मिला,
फिर से फ़ोन लगाया गया तो 'तुझसे है मेरा नाता पुराना कोई' का मोबाइल ने कॉलर ट्यून सुनाया।
सुन-सुन कर ये सब बोर हो गए ऐसा लगा शायद यमराज जी सो गए।
तहक़ीक़ात करने पर पता लगा, यमदेव पृथ्वी लोक में रोमिंग पे हैं, शायद इसलिए,
नहीं दे रहे हैं हमारी कॉल पे ध्यान, क्योंकि बिल भरने में निकल जाती है उनकी भी जान।
अन्त में किसी तरह यमराज हुए इंद्र के दरबार में पेश, इंद्रदेव ने तब पूछा-यम क्या है ये इस्तीफ़े का केस?
यमराज जी तब मुंह खोले और बोले- हे इंद्रदेव। 'मल्टीप्लैक्स' में जब भी जाता हूं, 'भैंसे' की पार्किंग
न होने की वजह से बिन फ़िल्म देखे, ही लौट के आता हूं। 'बरिस्ता' और 'मैकडोनल्ड' वाले तो देखते ही देखते
इज़्ज़त उतार देते हैं और सबके सामने ही ढाबे में जाकर खाने की सलाह दे देते हैं।
मौत के अपने काम पर जब पृथ्वीलोक जाता हूं 'भैंसे' पर मुझे देखकर पृथ्वीवासी भी हंसते हैं और कार न होने
के ताने कसते हैं।
भैंसे पर बैठे-बैठे झटके बड़े रहे हैं वायुमार्ग में भी अब ट्रैफ़िक बढ़ रहे हैं।
रफ़तार की इस दुनिया का मैं भैंसे से कैसे करूँगा पीछा।
आप कुछ समझ रहे हो या कुछ और दूं शिक्षा।
और तो और, देखो रंभा के पास है 'टोयटा' और उर्वशी को है आपने 'एसेंट' दिया, फिर मेरे साथ
ये अन्याय क्यों किया?
हे इंद्रदेव।
मेरे इस दुख को समझो और चार पहिए की जगह चार पैरों वाला दिया है कह कर अब मुझे न बहलाओ,
और जल्दी से 'मर्सीडिज़' मुझे दिलाओ। वरना मेरा इस्तीफ़ा अपने साथ ही लेकर जाओ।
और मौत का ये काम अब किसी और से करवाओ।

Thursday, September 16, 2010

Om Bhanna Thaam Photographs




Jai Shree Om Bhanna Sa ki:

Mai Dhirendra Singh Rathore Ek Baar raat ko Om bhanna k dhaam gayai or waha par darsan kar keyai or parsad chadai. Phir jab Hum waha sai ravana huai to humari motorcycle kai tyre k nichai ek choda sa pathar aa gaya, jab mainai waha par motor cycle khadi ki tab wo pathar waha nahi tha lakin jab mai waha sai rawana hua to motor cycle kai nichai Pathar aa gaya. Ek chota sa pathar jees par sai motorcycle asani sai nickal sakti thi lekin motorcycle ka pura joor laganai par bhi wo us pathar par sai nahi nickal saki. merai bhai nai kaha k kuch der rukh jatai hai lakin mainai pathar hataya or chaldiyai. Rohit puchai to Police Nai hamara Chalan kar diya. Taab mujhai eshas hua k agar hum ruck jatai to yeh nahi hota.

Or sayad woh pathar humai rook raha tha.


Jai Om Bhanna Sa Ree....................

Wednesday, August 11, 2010

God Brahma


Brahma Ji Ko Dunyia ka Nirmata kaha jata hai. Aaj Unki kuch Tasvir Aapkai Samnai Parstut Hai:

Wednesday, June 16, 2010

लोक देवता बाबा रामदेव पीर



Dhirendra Singh Rathore




भारत की इस पवित्र धरती पर समय समय पर अनेक संतों,महात्माओं,वीरों व सत्पुरुषों ने जन्म लिया है | युग की आवश्कतानुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बल से, दुखों से त्रस्त मानवता को दुखों से मुक्ति दिला जीने की सही राह दिखाई | १५ वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लुट खसोट,छुआछुत,हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी अराजक बनी हुई थी | ऐसे विकट समय में पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चेत्र शुक्ला पंचमी वि.स. १४०९ को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार,वैर-द्वेष,छुआछुत का विरोध कर अछुतोद्वार का सफल आन्दोलन चलाया | हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था | सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा पीर | मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते है वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का विशेष स्थान है |
पाबू हड्बू रामदे , माँगाळिया मेहा |
पांचू पीर पधारजौ , गोगाजी जेहा ||
बाबा रामदेव ने छुआछुत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की | डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया | यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है | बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की | यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया | प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ " मारवाड़ रा परगना री विगत " में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है - भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अद्भुत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया | बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधी लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में परचा देना कहते है | इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है | जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलोकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए | बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली | इस चमत्कार (परचा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया | आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स.१४४२ को जीवित समाधी ले ली | आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है

राजस्थान के लोक देवता श्री पाबूजी राठौङ



गुजरात राज्य मे एक स्थान है अंजार वैसे तो यह स्थान अपने चाकू,तलवार,कटार आदि बनाने के लिये प्रसिद्ध है । इस स्थान का जिक्र मै यहाँ इस लिये कर रहा हूं क्यों कि देवल चारणी यही कि वासी थी । उसके पास एक काले रंग की घोडी थी । जिसका नाम केसर कालमी था । उस घोडी की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई थी। उस घोडी को को जायल (नागौर) के जिन्द राव खींची ने डोरा बांधा था । और कहा कि यह घोडी मै लुंगा । यदि मेरी इच्छा के विरूद्ध तुम ने यह घोडी किसी और को दे दी तो मै तुम्हारी सभी गायों को ले जाउगां ।
एक रात श्री पाबूजी महाराज को स्वप्न आता है और उन्हें यह घोडी(केशर कालमी) दिखायी देती है । सुबह वो इसे लाने का विचार करते है । और अपने खास सरदार चान्दा जी, डेमा जी के साथ अंजार के लिये कूच करते है । देवल चारणी उनकी अच्छी आव भगत करती है और आने का प्रयोजन पूछती है । श्री पाबूजी महाराज देवल से केशर कालमी को मांगते है । देवल उन्हें मना कर देती है और उन्हें बताती है कि इस घोडी को जिन्द राव खींची ने डोरा बांधा है और मेरी गायो के अपहरण कि धमकी भी दी हुइ है । यह सुनकर श्री पाबूजी महाराज देवल चारणी को वचन देते है कि तुम्हारी गायों कि रक्षा कि जिम्मेदारी आज से मेरी है । जब भी तुम विपत्ति मे मुझे पुकारोगी अपने पास ही पाओगी । उनकी बात सुनकर के देवल अपनी घोडी उन्हें दे देती है ।
श्री पाबूजी महाराज के दो बहिन होती है पेमल बाइ व सोनल बाइ । जिन्द राव खींची का विवाह श्री पाबूजी महाराज कि बहिन पेमल बाइ के साथ होता है । सोनल बाइ का विवाह सिरोही के महाराज सूरा देवडा के साथ होता है । जिन्द राव
शादी के समय दहेज मे केशर कालमी कि मांग करता है । जिसे श्री पाबूजी महाराज के बडे भाइ बूढा जी द्वारा मान लिया जाता है लेकिन श्री पाबूजी महाराज घोडी देने से इंकार कर देते है इस बात पर श्री पाबूजी महाराज का अपने बड़े भाइ के साथ मनमुटाव हो जाता है ।
अमर कोट के सोढा सरदार सूरज मल जी कि पुत्री फूलवन्ती बाई का रिश्ता श्री पाबूजी महाराज के लिये आता है । जिसे श्री पाबूजी महाराज सहर्ष स्वीकार कर लेते है । तय समय पर श्री पाबूजी महाराज बारात लेकर अमरकोट के लिये प्रस्थान करते है । कहते है कि पहले ऊंट के पांच पैर होते थे इस वजह से बरात धीमे चल रही थी । जिसे देख कर श्री पाबूजी महाराज ने ऊंट के बीच वाले पैर के नीचे हथेली रख कर उसे उपर पेट कि तरफ धकेल दिया जिससे वह पेट मे घुस गया । आज भी ऊंट के पेट पैर पांचवे पैर का निशान है ।
इधर देवल चारणी कि गायो को जिन्दा राव खींची ले जाता है | देवल चारणी काफी मिन्नते करती है लेकिन वह नही मानता है , और गायो को जबरन ले जाता है | देवल चारणी एक चिडिया का रूप धारण करके अमर कोट पहुच जाती है | अमर कोट में उस वक्त श्री पाबूजी महाराज की शादी में फेरो की रस्म चल रही होती है तीन फेरे ही लिए थे की चिडिया के वेश में देवल चारणी ने वहा रोते हुए आप बीती सुनाई | उसकी आवाज सुनकर पाबूजी का खून खोल उठा और वे रस्म को बीच में ही छोड़ कर युद्ध के लिए प्रस्थान करते है | (कहते है उस दिन से राजपूतो में आधे फेरो का ही रिवाज कल पड़ा )
पाबूजी महाराज अपने जीजा जिन्दराव खिंची को ललकारते है | वहा पर भयानक युद्ध होता है | पाबूजी महाराज अपने युद्ध कोशल से जिन्दराव को परस्त कर देते है लेकिन बहिन के सुहाग को सुरक्षित रखने के लिहाज से जिन्दराव को जिन्दा छोड़ देते है |सभी गायो को लाकर वापस देवल चारणी को सोप देते है और अपनी गायो को देख लेने को कहते है | देवल चारणी कहती है की एक बछडा कम है | पाबूजी महाराज वापस जाकर उस बछड़े को भी लाकर दे देते है |
रात को अपने गाँव गुन्जवा में विश्राम करते है तभी रात को जिन्दराव खींची अपने मामा फूल दे भाटी के साथ मिल कर सोते हुओं पर हमला करता है | जिन्दराव के साथ पाबूजी महाराज का युद्ध चल रहा होता है और उनके पीछे से फूल दे भाटी वार करता है | और इस प्रकार श्री पाबूजी महाराज गायो की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे देते है | पाबूजी महाराज की रानी फूलवंती जी , व बूढा जी की रानी गहलोतनी जी व अन्य राजपूत सरदारों की राणियां अपने अपने पति के साथ सती हो जाती है | कहते है की बूढाजी की रानी गहलोतनी जी गर्भ से होती है | हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गर्भवती स्त्री सती नहीं हो सकती है | इस लिए वो अपना पेट कटार से काट कर पेट से बच्चे को निकाल कर अपनी सास को सोंप कर कहती है की यह बड़ा होकर अपने पिता व चाचा का बदला जिन्दराव से जरूर लेगा | यह कह कर वह सती हो जाती है | कालान्तर में वह बच्चा झरडा जी ( रूपनाथ जो की गुरू गोरखनाथ जी के चेले होते है ) के रूप में प्रसिद्ध होते है तथा अपनी भुवा की मदद से अपने फूफा को मार कर बदला लेते है और जंगल में तपस्या के लिए निकल जाते है |
पाठक मित्रो को बोरियत से बचाने के लिये कथा को सीमित कर दिया गया है ।


Dhirendra Singh Rathore ( Raipalote)

Tuesday, June 15, 2010

जहाँ मन्नत मांगी जाती है मोटरसाईकिल से !

विविधताओं से भरे हमारे देश में देवताओं,इंसानों,पशुओं,पक्षियों व पेडों की पूजा अर्चना तो आम बात है लेकिन मै यहाँ एक ऐसे स्थान की चर्चा करने जा रहा हूँ जहाँ इन्सान की मौत के बाद उसकी पूजा के साथ ही साथ उसकी बुलेट मोटर साईकिल की भी पूजा होती है, और बाकायदा लोग उस मोटर साईकिल से भी मन्नत मांगते है और हाँ इस चमत्कारी मोटर साईकिल ने आज से लगभग २१ साल पहले सिर्फ स्थानीय लोगों को ही नहीं बल्कि सम्बंधित पुलिस थाने के पुलिस वालो को भी चमत्कार दिखा आश्चर्यचकित कर दिया था और यही कारण है कि आज भी इस थाने में नई नियुक्ति पर आने वाला हर पुलिस कर्मी ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले यहाँ मत्था टेकने जरुर आता है |
जोधपुर अहमदाबाद राष्ट्रिय राजमार्ग पर जोधपुर से पाली जाते वक्त पाली से लगभग 20 km पहले रोहिट थाने का " दुर्घटना संभावित" क्षेत्र का बोर्ड लगा दिखता है और उससे कुछ दूर जाते ही सड़क के किनारे जंगल में लगभग ३० से ४० प्रसाद व पूजा अर्चना के सामान से सजी दुकाने दिखाई देती है और साथ ही नजर आता है भीड़ से घिरा एक चबूतरा जिस पर एक बड़ी सी फोटो लगी,और हर वक्त जलती ज्योत | और चबूतरे के पास ही नजर आती है एक फूल मालाओं से लदी बुलेट मोटर साईकिल | यह वही स्थान है और वही मोटर साईकिल जिसका में परिचय करने जा रहा हूँ |
यह "ओम बना " का स्थान है ओम बना ( ओम सिंह राठौड़ ) पाली शहर के पास ही स्थित चोटिला गांव के ठाकुर जोग सिंह जी राठौड़ के पुत्र थे जिनका इसी स्थान पर अपनी इसी बुलेट मोटर साईकिल पर जाते हुए १९८८ में एक दुर्घटना में निधन हो गया था | स्थानीय लोगों के अनुसार इस स्थान पर हर रोज कोई न कोई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाया करता था जिस पेड के पास ओम सिंह राठौड़ की दुर्घटना घटी उसी जगह पता नहीं कैसे कई वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाते यह रहस्य ही बना रहता था | कई लोग यहाँ दुर्घटना के शिकार बन अपनी जान गँवा चुके थे | ओम सिंह राठोड की दुर्घटना में मृत्यु के बाद पुलिस ने अपनी कार्यवाही के तहत उनकी इस मोटर साईकिल को थाने लाकर बंद कर दिया लेकिन दुसरे दिन सुबह ही थाने से मोटर साईकिल गायब देखकर पुलिस कर्मी हैरान थे आखिर तलाश करने पर मोटर साईकिल वही दुर्घटना स्थल पर ही पाई गई, पुलिस कर्मी दुबारा मोटर साईकिल थाने लाये लेकिन हर बार सुबह मोटर साईकिल थाने से रात के समय गायब हो दुर्घटना स्थल पर ही अपने आप पहुँच जाती | आखिर पुलिस कर्मियों व ओम सिंह के पिता ने ओम सिंह की मृत आत्मा की यही इच्छा समझ उस मोटर साईकिल को उसी पेड के पास छाया बना कर रख दिया | इस चमत्कार के बाद रात्रि में वाहन चालको को ओम सिंह अक्सर वाहनों को दुर्घटना से बचाने के उपाय करते व चालकों को रात्रि में दुर्घटना से सावधान करते दिखाई देने लगे | वे उस दुर्घटना संभावित जगह तक पहुँचने वाले वाहन को जबरदस्ती रोक देते या धीरे कर देते ताकि उनकी तरह कोई और वाहन चालक असामयिक मौत का शिकार न बने | और उसके बाद आज तक वहाँ दुबारा कोई दूसरी दुर्घटना नहीं हुयी |
ओम सिंह राठौड़ के मरने के बाद भी उनकी आत्मा द्वारा इस तरह का नेक काम करते देखे जाने पर वाहन चालको व स्थानीय लोगों में उनके प्रति श्रधा बढ़ती गयी और इसी श्रधा का नतीजा है कि ओम बना के इस स्थान पर हर वक्त उनकी पूजा अर्चना करने वालों की भीड़ लगी रहती है उस राजमार्ग से गुजरने वाला हर वाहन यहाँ रुक कर ओम बना को नमन कर ही आगे बढ़ता है और दूर दूर से लोग उनके स्थान पर आकर उनमे अपनी श्रद्धा प्रकट कर उनसे व उनकी मोटर साईकिल से मन्नत मांगते है | मुझे भी कोई दो साल पहले अहमदबाद से जोधपुर सड़क मार्ग से आते वक्त व कुछ समय बाद एक राष्ट्रिय चैनल पर इस स्थान के बारे प्रसारित एक प्रोग्राम के माध्यम से ये सारी जानकारी मिली और इस बार की जोधपुर यात्रा के दौरान यहाँ दुबारा जाने का मौका मिला तो सोचा क्यों न आपको भी इस निराले स्थान के बारे में अवगत करा दिया जाये |

Read more: http://www.gyandarpan.com/2009/03/blog-post.html#ixzz0qvSd593l